आज मुझ से वो बीछड रहा है,
वो मेरे दिल का हिस्सा रहा है।
वो मुझे भी साथ लेके जा रहा है,
कतरा कतरा मुझमें समा रहा है।
जानकर भी अनजान बन बैठे है,
दिलके महेमां ही दुश्मन बन गये है।
बाते हमारी अनकही अनजानी है,
समजकरना समजना तेरी दिवानगी है।
हमे नाझ थाकी हमारी खामोशी वो पठते है,
आज मालुम हुवा की उन्हें भी अल्फाज प्यारे है।
~ किरण पियुष शाह “काजल”
Leave a Reply