अेक मनचाही तस्वीर हो तुम।
शायद मेरी खुल्ली हुइ आंखो की चाहत हो तुम।
बंध होठो पे छुपा हुवा इकरार हो तुम।
शायद मेरे ख्वाबो ने दी हुइ तामीर हो तुम।
उल्जे हुवे जजबातो की कसम हो तुम।
शायद मेरे गीतो की रोशनी हो तुम।
मेरी प्यासी जीदगी की प्यास हो तुम।
शायद मेरे जीने का मकसद हो तुम।
मेरी आरजु मेरी तमन्ना जाने जीगर हो तुम।
शायद मेरे दिल में बसी हुई मुरत हो तुम।
तुम एक तस्वीर नहीं…
मेरे ख्वाबो की धरोहर हो तुम।
तुम मेरी कल्पना नही…
‘काजल’ मेरे कलम की स्याही हो तुम।
मेरी प्रेरना मेरी हमसफर मेरी राजदार हो तुम।
कया कहे कैसे कहे ….,
शायद उसके जीने की आरजु हो तुम.
– किरण पियुष शाह
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