इस आगन मे, ना आयेगी कभी खुशी।
यहा तो गम का बसेरा है बरसो से।
यहा कैसे आयेगी खुशीयो की डोली?
ना यहा की कली, फुल बनके मुश्कुरायेगी।
ना आयेगा भंवरा कली को खीलाने।
ना कोइ बारात इस अंगना मे आयेगी।
ना कोइ लडकी यहा दुल्हन बनेगी।
कभी ना रचायेगा कोइ महेंदी।
न बाजा बजेगा, न डोली चेडेगी।
ना कोइ दुल्हन यहा साज सजेगी।
ना होगे मोती के गहने, ना होगे फुलो के सहरे।
यहा तो गम का ठीकाना है यहा कैसे कोइ गायेगी सहेरा।
ना कोइ गायेगा बीदाई यहा।
यहा तो कीतनी हीर हुई है शहीद।
ना फीर भी कोइ रांझा ईधर है आया।
ना कभी कोइ उस आंगन में खेला।
ना कोइ ईस आंगन मे खेलेगा।
कैसे बताए आपको हम..हालात दी की..
ना कोइ मां शीख यहा देगी।
ना बाबुल यहा बेटी को गले लगायेगा।
ना कोइ भाई बहेन को डोली चडायेगा।
ये कैसा माहोल है यहा का।
ये कैसी रीत है यहा की….
जो पैदा होते ही बेटी को….
‘काजल’ जीदगी की जगह दे देते है मौत।
दे देते है मौत ..मौत ………
-किरण पियुष शाह
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