ना चाहते हुए भी हमनें ,
खामोशीओ का शोर साथ रख्खा है.
चारों तरफ है शोरगुल,
और उदासी का शोख पाल रख्खा है..
दुनिया चलती है साथ साथ,
जब तक हौसलों को थाम रख्खा है.
जहाँ छुटी पतवार हाथोंसे,
किनारों ने भी कहाँ हाथ रख्खा है.
सैकड़ो भाषण दिए हो मंच पर
छुपाकर दिलमें कोई नाम रख्खा है.
किसी को अपनाने की चाहमें
ख़ुद को ग़ैर बनाके सरेआम रक्ख़ा है.
जीवनभर जिसके साथ चलते रहे
साँस थमते सजाके लाश रक्ख़ा है
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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