मशरूफियत का दम भरता ये ज़माना अपनी औकात दिखता है
जब खुशियाँ हमारी देख जलता है तब अपना ही मुँह छुपाता है
हम उसकी खूबियाँ कैसे जाने,वो बेरंग हर रंग नया दिखलाता है
हर वक्त दोस्ती का तकाजा करता, छुपके खंजर खूब चलाता है
जब भी गीरे बड़ा लुफ्त उठाये, उठे जब शानसे धक्का लगता है
दोस्ती को छोडो उसक़ी,वो दुश्मनो की गिनती तक नहीं आता है
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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