जब भी जायें महेफिल से मस्ती बनाके जाऐ
अपनी खुदकी भी कुछ हस्ती बनाके जाऐ.
चाहे कितनी कठिन है दुनियादारीकी राहें,
प्यार से भरी अपनी अलग बस्ती बनाके जाऐ.
जिंदगी का मतलब ही पाकर फिर खोना है,
हाथोंसे फिसलती रेतमें दोस्ती बनाके जाऐ.
मिलता नहीं कोई यहाँ ईमानदारी बेचते हुए
जुठ को महँगा, ख़ुशी को सस्ती बनाके जाऐ.
जीवन भवसागर है कोई बचकर जाता नहीं
जग हसते पार कर लें ऐसी कस्ती बनाके जाऐ.
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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