तुम औरत गुमनाम…
माँ,बहन,बेटी पत्नी, न जाने तेरे है कितने नाम
इन सब के बीच दबी तुम, एक औरत गुमनाम.
बनकर बेटी बापकी चौखट का तू पहला दर्पण ,
पत्नी बनकर अपना सब कुछ कर दिया समर्पण.
रुप सुनहरा माँ का जानकर सुख किया अर्पण.
अपनी आज़ादी का हँसकर खुद कर दिया तर्पण.
जुबान तेरी अजन्मी रही, अश्क़ का ना कोई दाम.
उम्रके हर पड़ाव पर नीलाम एक औरत सरेआम.
हर दिन तेरा नया जन्म हुआ इक नई परीक्षा साथ.
कई सलवट भरे दिन गुजरे ,वही हादसो भरी रात.
गिरा अगर दुपट्टा सर का, बढ़े वासनाओं के हाथ.
इन सबके बीच हुई पल भर में एक औरत बदनाम.
हो भले परीक्षा कितनी, मिलें कोई भी परिणाम.
ना झुकना, हारना तु कभी तुझसे हैं जग का गुमान
तुम औरत गुमनाम…
– रेखा विनोद पटेल (डेलावर)
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