छोड़ दे सारी फ़िक्रें, नए साज़ सजा लें हम
कल का भरोसा क्या? आओ प्रीत सजा लें हम
तुम थाम लो मेरा हाथ, तो चलतें रहें दिन रात
तेरी आँखों के सपने मेरी आखोंमें आज
अबतो तेरे साये में बीते जीवनकी शाम,
आओ प्रीत सजा लें हम…
भूलके रस्म-औ-रिवाज़, तुमको गले लगा लें हम
कल का भरोसा क्या? आओ मौज मना लें हम
जब तुम अपने संग हो, हर सांस गुलाबी है
तेरे होने से अपना अब हर ठाठ नवाबी है
दिलको जो समजे उसको हर बार सलामी है,
आओ प्रीत सजा लें हम …
चाहे बहारे ढल जाए पर साथ ना छोड़े हम
कल का भरोसा क्या? आओ प्रीत सजा ले हम
आओ प्रीत सजा लें हम ….
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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