भूलकर सब रस्मो रिवाज चले आओगे तुम,
इसी सोचमें हमें हर जगह मिल जाते हो तुम.
रातने जिन हकीकत को अधुरा छोड़ दिया था
बड़े नादाँ होकर उसकी तस्वीर सजाते हो तुम.
जिंदगी सूखे पत्तो का ढेर है बखूबी जानते हो,
फिरभी आग तड़पन की इनमे लगाते हो तुम.
ख़्वाब जिन्दगी भरका जो इन आखों ने देखा,
आप बेवक्त अश्क गिराके उन्हें घुलते हो तुम.
हर बार जाकर तुम कुछ नया लाओ भी कहासे,
तो वही पुराना इश्क में इंतजार कराते हो तुम
ना मंज़िल का पता ना कदमो के निशाँ बाकी है,
खुद ही चले गए हो अब क्यों याद आते हो तुम.
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
Leave a Reply