बरसों से,
हम और तुम
लोहे की दो पटरी के समान है
जो दुर दुर तक साथ चलती है,
पर पास रहेते कभी मिल नहीं पाते ..
बरसों से
हम और तुम,
दीवार पर दो लटकी तस्वीरे जैसे है
सालों से पास पास सजती है,
फिरभी एक दुसरे को देख नही पाते …
बरसों से
हम और तुम,
एक ही पन्नेकी दो बाजू है
एक दुसरे से जुडे है फिर भी
हम तुम्हे कभी पढ़ नहीं पाते …..
बरसों से,
हम और तुम,
शतुरमुर्ग तरह काममें डूबे रहेते है
शुकुन के लिए नजरे मिला लेते है
समस्याओ के बहार निकल नहीं पाते ….
बरसों से…
हम और तुम
अलफाजो मे अपना वजुद ढुंढते रहेते है
हां ..यहा हम रोज मिलते है
फिरभी शब्दोंसे आगे मिल नहीं पाते …..
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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