आज की वास्तविकता, मेरे प्यारे भैया …
धागे को थोड़ा सजा देने से वो राखी नहीं कहलाती
राखी तब कहलाती है वो जब तुम्हारी कलाई पे सजती है
प्यार को मोतियों से पिरोकर एक डोरी मैंने सजाई है
कुछ ज़ज्बात है एक बंधन है जन्मों का सच्चा रिश्ता है
स्नेह के रंगों से सजाकर मैंने जब भी ,
तेरी कलाई पे राखी बाँधी है …
हर बार दिलसे मेरे दुआओं की फूलजड़ी बरसी है
हर बार दुआ में तेरी लंबी उम्रकी कामना की है
तेरे हर कदम पर सुख ऐश्वर्य हो इच्छा की है
बदले में तूने अपने गुल्लक से
निकाल कर कुछ तोहफे मुझे दिए है
जो अनमोल है मेरे लिए क्योंकि उसमे तेरा स्नेह है
पर आज कुछ और चाहिए उन तोहफो के बदले
कुछ पुरानी यादे दे दे, वो छोटा सा भैया लौटा दे ,
जो हर डगर पे सदा साथ चलता था
जो माँ कि आँखो का तारा था, पापा का राज दुलारा था
उसकी यादों संग बचपन मेरा मुस्कुराता था
जिसकी आँखो में नमी तैरती थी होठों पर हँसी रहती थी
क्या याद है तुम्हें वो बचपन वाले दिन?
तुम सोने की राखी मांगते कभी चाँदी वाली चाहते
हम प्यारसे समझा देते, तुम फूलों से भी मान जाते.
जानती हूँ आज तुम अपनी दुनिया में व्यस्त हो
कुछ और ज्यादा नहीं चाहिए थोड़ा वो बचपन लौटा देना
मेरे प्यारे भैया..
है ये राखी का त्यौहार मेरी दुआओं कुबूल कर
बदले में मेरा मनचाहा तोहफा देना …
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
Leave a Reply