सामाजिक ग्रुप होने का क्या फायदा अगर समाज के हित की बाते ही उसमे न कि जाति हो। न ही गलत घटनाओ स्थितियो पर आवाज उठाई जाती हो।
सिर्फ अभिनंदन और शुभकामना बाटना ही अगर हमारा काम है तो हमे इस तरह की सामान्य समाज व्यवस्था पर गर्व करने जैसा कोई कारण नही दिखाई देता है।
समाज लोगो से बनता है, समाज अच्छी सोच से बनता है, समाज सही फैसलो से बनता हैं, समाज सच्ची नियत से बनता है।
समाज मे इस हद की गंदकी बढ़ती जा रही है, लेकिन फिर भी खुद को समाज के वडील और आगेवान बताने वाले चुप है। उनके मुंह से हलफ तक नही निकल रहे, वह मौन बनकर पूरा खेल देख रहे है। न जाने वह क्यों चुप है, इसलिए क्योंकि वह खुद इस दलदल में डूबे हुए है या फिर उन्है समाज की सोच और भविष्य को अंधेरे में देखना पसंद है?
क्या हम बदलाव नही चाहते? क्या हम ऊपर उठना नही चाहते? क्या हम नही चाहते कि आने वाली पीढ़ी संस्कार के साथ जन्मे? क्या हम नही चाहते कि हमारा समाज, भविष्य में युग प्रवर्तक बनकर लोगो को याद रहे। सिवाय के लोग हमारी दिन प्रतिदिन नीचे की और गिरती हुई निम्न प्रकार की सोच को लेकर हमे याद करे।
मैंने अक्सर देखा है, समाज मे यह आम बात होती जा रही है।किसी भी भूल पर उसे टोका जाता है, लेकिन मदद का हाथ कभी नही बढ़ाया जाता। जब हम खुद के सगे भाई बहन के साथ ही बैठने जितनी उच्च सोच नही विकसित कर पा रहे तो समाज व्यवस्था को उत्कृष्ट मूल्यों तक किस तरह से ले जाया जा शकेगा। दुनिया के किसी भी हिस्से में देख लीजिए, समाज की बात हर कोई करता है लेकिन उसे पहचानना शिख ले। अगर वह खुद अपने परिवार के नही बैठ शकता तो वह खाख समाज के मूल्यों के साथ न्याय करेगा।
अगर याद हो तो शास्त्रो में कहां गया है की बुद्धिहीनो के शोर से ज्यादा खतरनाक समझदारों की खामोशी होती है, और यही हमारे (यूँ कहे कि हर समाज, सोसायटी में) यहां हो रहा है।
– दहेज जैसे दूषणो से लड़ने के बजाय उसी दूषण को सहारा बना कर दहेज के नाम पर गुजरते समय के साथ बेटियों को खुलेआम पैसो के दम पर बेचा जा रहा है। बेटियो के दाम लाखो में लगाये जा रहे है।
– बेटियां जो कल तक संतान थी, आज वह एक वस्तु बन गई है। जिसकी कीमत लगाई जाती है, उसका सुख और पसंद नही संबंधी की जायदाद और मिलकत देखी जाती है।
– जूठे दिखावो और किसी के अनजान होने का फायदा उठाया जा रहा है।
– रीति रिवाज के नाम पर एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए या खुद को ऊंचा दिखाने की लालसा में समाज के रिती रिवाजो के बदला और कुचला जा रहा है।
– दिखावो के दम पर जुठ की बुनियादें रख रखकर रिश्ते बनाएं जा रहे है, जिसका सीधा अर्थ है सादी ब्याह जैसे जीवनभर के रिश्ते जुठ की नींव पर टिकाए जा रहे है।
– अंधेरे में रखकर किये गए संबंध के कारण समाज की कई बहेनो और भाइयो का जीवन नर्क बन जाता है, लेकिन फिर भी ऐसी संतानो को जिम्मेदारी से छुटने का जरिया बनाकर संबधी को अंधेरे में रखा जा रहा है।
– सूर्पनखा और रावण जैसी औलादो को राम और सीता जैसी दिखाकर खुद की नाक बचाने के इरादे से संबधियों की मान मर्यादा और संस्कार और खुशी को बर्बाद किया जाता है।
– एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए दो गाओ वाले तो क्या, एक ही माँ के जने दो भाई तक साथ नही बैठते है। भाई-भएको काट रहा है, लेकिन फिर भी खुद को महान समझने की मूर्खता खत्म नही हो रही है।
समाज किसी एक इंसान से नही बनता है, इसी तरह समाज किसी एक के बदलने से नही बदलता। समाज कोई अस्तित्व नही है, समाज हम से ही बनता है। अगर आज समाज की स्थिति दयनीय है तो यह स्पष्ट है कि हमारे संस्कारो में गिरावट आई है। समाज को बहेतर बनाने के लिए हमने प्रयास करना छोड़ दिया है, क्योंकि अगर प्रयास किये जाते तो उसके परिणाम भी अवश्य ही हमे दिखाई देते।
सिर्फ महान इतिहास से कोई समाज या संघठन मजबूत नही बनता वह अपनी सोच से बनता है, नियत से बनता है, बदलाव से बनता है।
अगर आप अपने संतान के लिए बहेतर समाज का निर्माण करना चाहते है तो आज से, अभी से अपना योगदान उचित कार्यो में दे। जब कभी कुछ समाज के अहित में लगे बिना डरे उस दूषण का विरोध करे, अगर आप मौन रहते हो तो इस्का स्पष्ट अर्थ है कि आप उसे अपनी मौन सहमति प्रदान कर रहे है।
– सुलतान सिंह
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