ख्वाब खूल्ली आंखो का
जबसे .. बीछडे हे..
आंखो से
ये
नींद ओझल सी हुई हे।
भूल सी गई हु की..
नींद और ख्वाब…
कीस चीडिया का नाम हे?
सुनो…..
जबसे तूम्हे मीले हे न…
नींद तो रूठी हुई हे..
ख्वाब खूल्ली आंखो में तस्वीर तुम्हारी
देख कहीं छूप जाते हे.।
बादलो की ओट से
चांद हलका सा मुश्कुराता है।
सितारे आंखो की पुतलीओ में
जुगनुओं की तरह रातभर झीलमीलाते हे।
सागर में उठती लहरो की तरह
मन की तरंगे तूफान मचाती हे।
बार बार ख्वाबो में मंजर पूराने सताते रहे…
कीस्सा एकबार का होता तो भूल भी जाते।
उफ़्फ़
तुम्हारी यादोने कोहराम मचा रखा है..
यें तो शाम सें ही डेरा अपना डालते हे।
अकेलापन नहीं अखरता जीतनी तूम्हारी यादें,
पहेले आजाद पंछी बनी उडती थी।
गगन मेरा ठीकाना था,
अब.?
तूम्हारी यादो के पींजर में कैद खूद को कर दीया।
अपने ही पंख कुतर दीये हे।
काश … वो पल .. लौट आये..
तूम्हारा साथ हो और वक्त थंभ जाये,
या..
गहरी नींद और सुकुन के ख्वाब मील जाये।
आंखो में तूम्हारी तस्वीर के साथ
कुछ मौसम युंही बीत जाये..
कयां एसा मुमकीन हे ?
हो शकता हे?
ख्वाब पूरा खूल्ली आंखो का…?
काजल
किरण पियुष शाह
Leave a Reply