यह क्या एक सपना है?
कि फिर कोई हकीकत है .
या शायद पुनर्जन्म का रिस्ता है
कितना मनभावन ये फरिश्ता है.
वो जो हमसे वाबस्ता है ….
जिन्हे देखा नही कभी मैने
पर उनके अलफ़ाज़ मैं पढ़ती रही
वो लफ्ज़ वो प्यार भरे जजबात
जो मेरे दिल मे बीज बोते रहे…
अब एक ही ख्वाहिश बाकी है
कानोंसे सुनने को बेकरार है हम
अब उम्मीद को, हकीकत बनादो
शायद आँखों को भी इन्तेजार है
वह एक खूबसूरत रिश्तेका.
या तो फिर कही,
पूर्नर्जनम के कोई सत्य का….
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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