उन हथेलीमें एक बार चहेरा देखा था, आईने की तरफ तबसे मुड़ना भूल गये,
नशीली आँखोसे छलकता जाम पीया था, मैको फिर होठोंसे लगाना भूल गये.
सपनोंमे सही जबभी उन्हें हम देख लेते, झोली भर लेते ईदी समज कर,
उसने हथेलिओं पर हिना रचाई, तबसे घरमें हम जलसे सजाना भूल गये.
कुछ मजबूरियाँ और कुछ अधूरी अभिलाषा के बीच, हम जीते ढलते रहते,
सबकी झोलीमें खुशियाँ भरने की चाहमें, हाथ अपना हकसे बढ़ाना बुल गये.
एक बार उसकी झलक देख ली, जन्नतकी हूरो को आदाब कहना छोड़ दिया,
दूरियों में उम्र गई, वो आये मैयत से पहले, हम पलके कब्रसे उठाना भूल गये .
जिसकी कृपासे सब मिलता है, उसको अपनी मोह माया तले भूल चले
मतलबी दुनियाको मंज़िल बना बैठे, राम रहिम को दिया जलाना का भूल गये .
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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