तुम्हारा मन महकता गुलाब था
लेकिन! तुमने कभी.
इजहार नहीं किया !!
प्यार जताते नहीं
महसूस करते है!
यही सोचकर तुमने
मनके मीठे भावों को,
मौन तले दबा कर रख दिया.
धीरे धीरे …वो मौन
वटवृक्ष बनकर अपनी जड़ों को
मजबूती से फैलाता गया !!
साथ वो प्यार भी,
अंतर्मन की गुफामे
धसता चला गया !
समयको साक्षी मानकर
अपने ही हाथों सख्ती सें
गुफाका द्वार बंद कर दिया !!!
तुम दुःखी थे सोचकर
अब वो मर गया होगा.
कल रात वहा से आह सुनाई दी,
गौरसे सुना,
छोटा सा एक सपना
अबभी जीवित था, छटपटा रहा था
स्फुर्तीसे तुमने पथ्थर हटा दिया,
लेकिन अब बहोत देर हो चुकी थी.
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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