तुम क्यों इतने नाराज हो साथी
तुम्हें याद होगा सालों पहले……
तुमने मुझे मौन का तोहफा दिया था
मैंने तुम्हे अपनी बोलकी भाषा दी थी
निसंदेह तुमने मेरा तोहफा मनसे अपनाया,
बदलेमें मैंने तुम्हारे दिये मौन को गले लगाया.
आज तुम्हे मेरा चुप रहना गँवारा नहीं,
तुम्ही बताओ तुम्हारे तोहफे को कैसे ठुकरादु ?
सुनो साथी मेरा मौन वाचाल है
उसकी की एक अपनी भाषा है ,
वो कुछ न बोलकर बहुत कुछ कह जाता है ,
बस तुम उसे जान लो, समज़ लो …
मेरा “मौन” आनंदित है
अब उसे किसी उत्तर की प्रतीक्षा नहीं,
सम्पूर्ण निजानंद
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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