तुजसे मेरी पहचान
बहोत पुरानी नहीं,
फिर क्यों ….
इतने दिनोंमें तू
मेरी जिंदगी का,
हिस्सा बन चला है.
कभी सोचती हु
आज व्यस्त हु
कोई बात नहीं करनी,
फिर क्यों ….
दिल बहाना ढुँढ लेता है
समय चुरा लेता है
बात करने.
आज तक तुमसे
कितनी सारी बातें की,
फिर क्यों ….
बहोत कुछ कहना है
अपने बारेमें
बहोत कुछ सुनना है
तुम्हारे बारे में.
यु तो जिंदगीमें
कोई कमी नहीं थी.
फिर क्यों ….
तुम आये
दिलका खाली कौना
सानने आया
हाथ फैलाये,
“आ मेरी अधुरेी ख्वाईश “
में तेरा ही हिस्सा हुँ.
मुज़े छूले, सीने सें लगालें,
अपना बनालें….
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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