ठंड से जलता रहा पूरा शहर
पल पल पिगलता रहा रातभर…
जलनकी कंपनसे थिरकता रहा
काली सड़के उजाड़ता रातभर…
चिल्लाता जाता रोमछिद्र रूह तक
ठंडमें और ज़्यादा सिकुड़ता रातभर…
मोजे-स्वेटर पहनकर कही ख़ुश थी,
भूखे नंगे अंगमें दर्द नाचता रातभर…
सूरज भी सहम गया वो जलन देख
चाँद बदली के पीछे पड़ा रहा रातभर…
आग और फैलाती रही ढंडी हवाएँ
ये बिछड़ी यादें कौन जलाता रातभर…
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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