कौन समाज कौन से लोग, रीतियां उनकी न्यारी है,
पैसा देख कर रिस्ते निभाते, दौलत उनको प्यारी है,
रिस्ते दार अब कोई नही है, मिलते सब व्यापारी है,
जहां दिखेंगे नॉट हरे, बेटीयां वही पर बिहानी है,
मोल भाव का देख जमाना, इंसानियत बेचारी है,
रिस्ते दार अब कोई नही है, मिलते सब व्यापारी है,
संभल के रहियो जाती वालो, डस रही बीमारी है,
नॉट नही दिखेंगे जब, रिस्ते तुटने की वो तैयारी है,
रिस्ते दार अब कोई नही है, मिलते सब व्यापारी है,
रिस्ते नाते फेक हो गए, झूठी शान अब दिखानी है,
नॉट के दम पे गधे घोड़े हो गए, कैसी यह लाचारी है,
रिस्ते दार अब कोई नही है, मिलते सब व्यापारी है,
नॉट नही तो कुछ नही, मान, सन्मान और इंसान,
चलती है यह न्यात वही, जहां नोटो की क्यारी है,
रिस्ते दार अब कोई नही है, मिलते सब व्यापारी है,
~ सुलतान सिंह ‘जीवन’
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