राणा सांगा — स्वाभिमान की मिसाल
कट गई भुजा, न डगमगाया था,
राणा हर रण में मुस्काया था।
एक आँख गई, पर दृष्टि रही,
शत्रु दलों को धूल चटाया था।
सिंह बना था वह मेवाड़ का,
रणभूमि को भी स्वर्ग बनाया था।
शासन का सुख त्याग दिया उसने,
मातृभूमि को शीश चढ़ाया था।
सपनों में था एक संघ राजपूताना,
जिसके लिए खुद को भुलाया था।
कटते अंग, लहू की धारा —
हर कतरे ने झंडा उठाया था।
लोदी, खिलज़ी, शाह या बाबर,
सबको रण में पछाड़ आया था।
एक ही खानवा की हार सही,
पर विश्वासघात से हार पाया था।
इतिहास गवाह है उस योद्धा का,
जिसने स्वाभिमान बचाया था।
“गद्दार” कहते हो आज उसे?
जिसने खुद को आग में जलाया था?
– सुलतान सिंह ‘जीवन’ | ५ अप्रैल, २०२५
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