समुद्र शी गहरी नीली नशीली आंखें,
गुलाब शी पंखडीयो से नाजुक लब।
गोरे गालो पे छाइ ये गुलाबी सुरखी,
ये गीली झुल्फो का तेरे रुखसार पे छाना।
कसक उठती है दीलबर के इन्तजार में.
रुप तेरा बेमानी बीन तेरे सजना ।
ये अधखुले लबो पे छुपा एक नाम,
“काजल” तो सदीयो की प्यासी सजन की राह में।
~ किरण पियुष शाह “काजल”
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