ईबादत
तूम्हारे आनेसे पहले अगर मौत से मूलाकात हूई ,
कहेगें आ, जरा पहलु में बैठ बाते दो चार करले।
ईन्हा हूई ईन्तझार . ..चल आ तुम भी करले साथ मेरा।
मालूम तूम्हे भी पडेगा.. ये धडियां काटना क्यां मौत से आंसा है?
जीने की आरजु अब बेझार हूई।
आ अब तेरे साथ ही चल दू अब
शायद कयामत के दिन मूलाकात होगी.?
रब की ईबादत से ज्यादा महेबूब तूज से मुहब्बत की थी।
सोचते थे ईश्क क्यां ईबादत से कम है?
ईश्क ही तो ईबादत का दूसरा नाम है,
अच्छा हूआ आज गलतफेमियां दूक हूई।
तो, चलो आज तूजे ही रब मानलुं ,
सजदा तेरा ही करलुं तेरे लिए ही कसीदा पठ लुं
मेरे मालिक … मेे ने गून्हा कबूल कीया
एक बार नहीं, तीन बार कबूल कीया।
अब जीने की सजा दें या मौत का उपहार।
क्यां फर्क पडेगा अब बीन तेरे..
मेरी दिवावगी आवारगी बठती ही जायेगी
तूम्हारे लिए…
महेबूब मेरे महबूब
चलो आज रब से ही मूलाकात करले ..
किस्से सारे याद करले…
मौत के फरिश्ते चल ..
आ अब चला ही जाए…।
“काजल”
किरण पियुष शाह
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