युंही सागर किनारे…
कभी कभी सोचती हुं ..
कहीं दूर चला जाये.?
बादलो की सेर.??
नहीं ..आज सागर किनारे थोडा गीली रेत में चला जाये।।
थोडा सुकुन वो लहरो को भी दीया जाये।
ना जाने कीसको मिलने वो तडपती रहती हे।।
गीली रेत में वो छीपे बह के आती हे।
थोडा बचपना चढा के चलो खेला जाये।।
लहरो की बातें जो सूना रही हे संगीत, सूना जाये।
वो सागर का नर्तन बस युंही चूपचाप देखते जाये।।
कहीं दूर चांद बादलो में छूपा मिल जाये।
सितारो की रोशनी युंही बिखरी आसपास..
चलो उसे दामव में भर लीया जाये।।
रात की खामोसीययां में दिल की धडकन सून ली जाये..!
आसपास की विरानीयां सांसो में भर के..
थोडे सुकुन से हाथो में हाथ पकड के थोडा टहलीयां जाये..!
तेरे लबों पें सजे बिन कहे अल्फाझ…
कीतनी अनकहीं बातें बस तेरी आंखो में पढी जाये !
हाथो में तेरे छूने से आई गरमाहट..
बदन में बीजली की सिहरन महसुस की जाये.।।
तेरी मुहब्बत में दिवाने हो चले।
दिवानगी बढी हद से ज्यादा वो कैसे समजा पाये.?
चलो.? आज युंही …चला जाये..
काजल
किरण पियुष शाह
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