अछांदश
सुबह सुबह यादोने दस्तक दी,
दिल के द्रार पे आवाज पहेचानी सी ।
आंखोमे रात का सुमार बाकी था,
ख्वाबो का आशियाना वहीं जमा था।
लबो पे तेरे दंत के निशान कहां मीटे थे?
अभी तेरी खुशबु से तनमन लथबथ थे।
अंगडाई लेते ही तुमको सामने पाते,
बारीश की बुंदो शी ताजगीमे तुमको ही पाते।
बीजली की रोशनीमें तेरी तस्वीर नजर आती,
बादलो की गडगडाट तेरे अटहास्य की गुंज लगती।
तुम्हारे जाने के बाद समय थम सा गया ,
मै वही रुक ही गई जहां तुमने मुह मोडा ,
तेरे लबोके नीशान,
तेरे छुने का अहसास,
प्यार के वो लम्हें संभालके रखे है मेने
दिल को ये तस्ल्ली देते हुए.
तुम यहीं हो … मेरे आसपास.
ना,
तुमतो मेरे लहुं में बस गए हो,
दिल की धडकन में,
श्र्लासो में,
ख्वाबोमें, आंखोमें .. तुमही तो हो!
तुम कही नही गये , तुम तो मुंझमें ही बस गये हो.
दो जीस्म एक जान थे,
अब दो जान एक जीस्म …
तुम …
हां बस तुम ही तुम..
काजल
किरण पियुष शाह
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