पेड़ पर मैंने खालीपन लटक रहा देखा
जहाँ नीले वस्र पहने हँसी ख़ुशी रहते थे.
छोटे बच्चे कलियों और फूलो संग झुमते थे.
मौसमने करवट बदली …
एक एक करके ख्वाहिशें झर गई
ना कभी जख्म देखा ना लहू बहा
हर मौसम पे भारी ये मौसम रहा
सब कुछ टूट कर बिखर गया.
आज टहनियाँ भी वस्रविहीन थी
प्रकृति अपने आपमे शर्मसार थी
वक़्त उदास था सर्वत्र शून्यता थी
शायद इसे ही निर्वाणदिन कहते हैं
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
Leave a Reply