मुझमें अबभी कुछ बाकी है, जीने को बस येही काफी है
बात जीतनी दिखती सादी है, इसकी इतनी ही रवानी है
समज़ कर अंत किसीने, कहानी को अधूरा छोड़ दिया,
वक्त लगेंगा समझते, दुखोंकी शुरुआत वहीँ से आनी है
हालात बदलते ही, हर रिश्तो की पहचान बदल जाती है
हर दिल तराजू रखता है, यही तो घर घरकी कहानी है
इस रंगीन जहाँमे, सबकी तबियत से तबियत मिलती नहीं,
हो मुहब्बत दिलमे अगर, दो चहेरोकी पहचान पुरानी है
यह जीवन बाग़ है, कोई फूल देख अटका कोई शूल पर,
सच-जूठ के बीच बंधी आदमी की अपनी आमदानी है
चलते रहना जीवन है, हार जीत का आना बारी बारी है
थाम लेना हाथ उनका जिन आंखोमें इंसानियत पानी है
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
Leave a Reply