मेरे इश्क़ का रिश्ता उस और से गुज़र रहा हैं,
में बेजान सी सड़क हूँ वो रेल सा चल रहा हैं ,
आज भी उसकी याद मैं चाय दो कप बनाता हूँ
तू बता यादों का मौसम वहां कैसा चल रहा है
किसीने पूछा है मुझसे समशान का सबब, तो
वहां मुर्दा जल रहा है यहाँ जिन्दा जल रहा है
में अब्ब अभी उसी मोड़ पे खड़ा रह गया हूँ
और तू मुझसे बिछड़ के बड़ा तेज़ चल रहा है
वक़्त सबको ही बाटता है कुछ नायाब से तोहफे
वहां चाँद निकलता है, जहाँ सूरज ढल रहा हैं
ये तो तय है की वो इश्क़ से ही परेशान होगा,
जो मस्जिद के बहाने मैख़ाने से निकल रहा हैं
~ हिमांशु मेकवान
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