मैं क्यूँ इतनी स्तब्ध हु ??
बस वो कुछ पल की बात थी,अब सब कुछ आसान है,
मैंने अपने आपको ढूँढ लिया,अब मै यहीं आस पास हु
मन में एक धुँधली छवी थी,जो हर मौसम में उभर आती थी
आज उससे पीछा छुडा कर, मैंने हँसना सीख लिया
मेरा अपना आज है मेरी अपनी पहचान है !!
मैं देखो फिर खो गई ??
आज फिर उजली पारदर्शी यादों का मेला लगा है
इसमें हमतुम शामिल है जिसमे काल भी हैं आज भी है
मैंने प्यार से तुम्हे पुकारा है मुझे खुश देख़ने आ जाओ
दिलका एक कौना सायद प्यासा है बस एक बार बरस जाओ !!
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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