झिंदा होना नही झिन्दगी
लिखता हूँ बात कहानी में,
डूब गई अश्को में जैसे
मछली डूब मरी पानी में…
कैसे कैसे सपने देखे
वो सब चकना चूर हुए,
किस्मत के तूफाँ में मानो
दिल और धड़कन दूर हुए,
मिसरे दोनों ऐसे बिखरे
एक उला एक सानी में
डूब गई ग़झलें भी जैसे
मछली डूब मरी पानी में…
– भाविन देसाई ‘अकल्पित’
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