कुछ वक्त का अहसास तो बह जाता है,
बस चाय ही वो नशा है जो रह जाता है,
न वो कह पाती है, न हम कह पाते है,
चाय का वक्त कितना कुछ कह जाता है,
तमन्ना ओर कुछ पाने की कहा रहती है,
जब चाय का स्वाद दिल ये सह जाता है,
कई बार रहना पड़ता है जब बिना चाय,
सूज बूझ ओर ध्यान महल ढह जाता है,
लफ़्ज, खयाल, अहसास काम नही आते,
आनंद चाय का, बहोत कुछ कह जाता है,
~ सुलतान सिंह ‘जीवन’
[ प्रसंग : इंटरनेशनल चाय डे पर ]
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