कुछ इस तरहा आप बदलते चले गये
हमें अकेले छोडके यु चलते चले गये
न कह पाऊँगा कभी मुहब्बत है तुझसे
तस्वीर से तुम्हारी सब कहेते चले गये
सूरज के संग दिनभर तपते रहे विरह में
सुबह होने तक हम तारे गिनते चले गये
बहेते रहे नदी की तरह बेहिसाब बहुत
दरिया समजके तुझमे समाते चले गये
रहेगी अगर मुझपे मालिक की इनायत
तेरी ही मुहब्बत में सदियों बहेते चले गये
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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