कितनी अजीब बात है,
मैं, सब कुछ भूल सका,
पर भुला सका ना,
अब तक तुम्हारा वो,
दो घड़ी का अपनापन…
जहाँ हँसी बोलती थी,
वहाँ आँखे सुनती थी
अँगुलीओ ने हँसकर की थी बातें
अब वही सुनना,
मेरी फितरत बन गई थी ….
पहले चुपके याद करता था
वो बाते अब सरेआम करता हूँ,
तुम्हे गीतों में भरता हु,
अब में वो भाव को,
झोली में भरकर जीता हूँ….
बस कोई शिकायत नहीं
आत्मसम्मान नहीं.
ना कोई अशांति पास है.
अब सिर्फ में, तुम और,
पल-पल बिखरता प्यार है ….
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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