किसीने छूके मुझे अपना कहाँ रख्खा है ?
जैसे अपने ही साँसो में सजा रख्खा है.
मिले तो ऐसे की जैसे हवा से फूल खिले
कहीसे बहते हुए झरनेमें तपती घुप मिले.
जैसे अपने ही चाहतमें कैद बना रख्खा है.
हमारा होश यूँ दिन रात जवां रख्खा है
किसीने छूके मुझे अपना कहाँ रख्खा है ?
कभी खयालोंमे,कभी सामने वो आता है
कभी सरगोसी से दिलको भी छेड़ जाता है
जैसे अपने ही प्यारमें सदा बसा रख्खा है
हमें ही नूर कभी मुजरिम बना रख्खा है
किसीने छूके मुझे अपना कहाँ रख्खा है ?
जैसे अपने ही साँसो में सजा रख्खा है
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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