गुमनाम, हसीन ओर खयालो में खोई हुई सी,
महोबत न सही, इकरार-ए-इश्क से गिरी हुई सी,
वो दाओ पेच ओर कहरो से बहक जाने से,
दिल ही दिल मे, बेइंतहा वह गभराई हुई सी,
समझ और समय की बेड़ियों में जकड़ी हुई सी,
वो अंजान ही सही, मगर प्यार में बंधी हुई सी,
अहसास अल्फाज ओर बाते अधूरी लगती है,
कुछ कहानियो बातो में आज भी उलझी हुई सी,
मुक्कमल महोबत की दावेदार तो है इस दिल में,
मुकदमो दावो में फिर भी कही जुलसी हुई सी,
~ सुलतान सिंह ‘जीवन’
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