माँ का आँचल, बाप की दुवाएँ, बुजुर्गों की यादें, बच्चों के खिलौने और बहनों की राखियाँ कितनी पवित्र पावन होती हैं और साथ ही किसान का पसीना, मजबूर के आंसूं, मुफ़लिस के उदास चूल्हे और फुटपाथ पर अख़बार बिछा कर सोते हुए मज़दूर की थकान, शायरों को क्या क्या नये अर्थ प्रदान करती है …अगर आपको यह समझना हो तो रेखा पटेल से मिलिए, जी, हिन्दुस्तान की ये शायरा हालांकि रहती अमेरिका में हैं पर ग़ज़ल की अमानत वहां भी संभाल कर, संजो कर रखी है…आइये इस मुल्क की माटी आवाज़ देते हैं…रेखा पटेल जी को
दिल की बातें
कह ना सके जो दिल की बाते उसे शेर बनाकर सुना दिया,
जो ख़त तुम्हे हम दे न सके उसे गीत गज़ल है बता दिया,
शुक्रिया तुम्हारा हँसकर तुमने जुदाई का जहर पिला दिया,
मिले जो तुमसे गम के तोहफे, हमने शायरी में जता दिया,
खुद ही जाकर फकीर की भीड़ में पहेला नाम लिखा दिया,
वैसे तो तुम्हे हम पा ना सके, मीरा का किशन बना दिया
इल्जाम जमाने के सहकर अपने लबको हमनें सिला दिया
अब क्या डरना बेघर होने से खुद अपना सपना जला दिया,
एक ही खुशियों का पल था, करके कुरबान तुम्हे जीता दिया
ऊँचा सर तुम्हारा रहे, सोचकर कद छोटा अपना करा दिया
सिर्फ साथ तेरा पानेकी चाहमे, मंज़िल को हमने मिटा दिया
भूलकर अपना ख़ास वजूद जीते जी कब्र का पता दिया
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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