ज़िंदगी तुम रोज़ बदलती हो …
कभी बनकर रंगीन ख़्वाब आँखों में झलकतेी हो
कभी रंगहीन आँसू की तरहा आँखों से छलकती हो.
ज़िंदगी तुम रोज़ बदलती हो…
कभी तुम बहेते झरने की तरहा छनछन हँसती हो
कभी जीवनभर की दोस्त बनकर नया रंग भरती हो
ज़िंदगी तुम रोज़ बदलती हो…
कभी तुम खामोश रहकर अपने भीतर मचलती हो
कभी नशा ऐ दौलतमें झुमकर बेहिसाब बहेकती हो
ज़िंदगी तुम रोज़ बदलती हो…
कभी हरी पत्तियों पर औस जैसे पलभर सजती हो
कभी कंपते हाथों से बुढ़ापा बनकर फिसलती हो.
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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