तुम ज़न्नत की चाह मे जेहादी हो गए
तो हमलों के हम भी तो आदि हो गए
क्या मुक़ाम पाएगा चुनाव अब के बरस
कुर्ते सारे सिल्क के थे वो खादी हो गए
वो क्या रहा होगा जज़्बा ए मुल्क भगत का
की भरी जवानी में मोत को राज़ी हो गए
अब के क्या देखे हम एक आबाद मुल्क को
सपनें सारे आबादी के माज़ी हो गए
इश्क़ का शरुर कुछ इस तरह चढ़ा था की
काफ़िर से घूमते थे, अब नमाज़ी हो गए
~ हिमांशु मेकवान
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