हर सोचसे कहती हूँ, बस तुम्हें भूल चुकी हूँ
हर शाम कोयलकी कूहू तो कयूँ तडपाती है?
छोड़ दिया था कबसे रोज रोज का जलना
हर बार सावनकी बारिस फिर क्यूँ जलाती है?
अब ना देंगे इजाजत तुम्हे दिनमें सताने की,
हर रात पुरानी यादें सपनोंमे क्यूँ रुलाती है?
जितना भुलाना चाहा तुम् उतने पास आये हो.
हरवक्त बहती यादोंको, ना आँखे रोक पाती है.
शिकायत हम करे भी तो अब किसको करे,
हर राह ना कोई मंजिल तुम्हारा पता बताती है.
तुम्हे पाकर हर जिक्र में जहाँ पा लिया था
हर सुबह फिर खोकर वो अब सब्र जताती है.
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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