गुजरता हर लम्हा मेंरी आँखो से ढलता जाता है,
अब सब छूटता जा रहा है,
ये ख़त्म होनेसे पहेले
ओ बादल तुम्हे कुछ कहना है बताना है !!
अपनी आवारगी के तहद अगर तुम मेरे वतन जाओ,
थोड़ी देर ठहर जाना तुम,
अगर मिल जाए वो बूढ़ा पीपल का पैड
तो उनसे कहना तुम…
तुम्हारी छावमें बचपन गुजरा वो अब भी याद है।
कहना तू अब भी मेरे सामने है !!
अगर मिल जाए वो टुटा खँडहर
मेरी बात बताना तुम,
जो तुमसे बछडे उस वक्त उभरी थी,
वो कसक आज भी ताजा है !!
बस कुछ और चलना तुम
जहाँ पुराना एक शीशमहल होगा
उस छत पर रुकना तुम
थोड़ी अपनी छाव देना तुम
जहा बचपन गुजारा था,
छत पर दिल भी हांरा था.
वहाँ बस कहेकर जाना तुम
वो अब भी सिर्फ तुम्हारा है !!
बस अब दूर ना जाना तुम
मेरा मुकद्दर आजमाना तुम
बहोत दिनोंसे नहीं उसकी खेर खबर कोई
वहाँ एक टूटी दीवाल होंगी
उस पर लिखा पैगाम पढ़ना तुम
वो मुझ तक पहोचाना तुम !!!
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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