एक ओर गज़ल अघुरा जाम ना हो जाये,
कही लिखते लिखते युँ शाम ना हो जाये.
करते है इंतजार उनकी एक झलक का,
डरते है जिन्दगी का सलाम ना हो जाये.
लेते नहीं सरेआम उनका नाम डगर पे,
कही महोबत यूही बदनाम ना हो जाये.
एक दुआ मागते है वो जबभी याद आते
खुदा प्यार का बुरा अंजाम ना हो जाये.
सोचते है बैठकर हम तनहाई में अकसर
उस दिलमे किसीका मुकाम ना हो जाये.
वैसे तो नाज़ है हमें अपनी वफ़ाओ पर,
तुफानो में घिरकर गुमनाम ना हो जाये
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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