एक लड़की उम्र सोलाः की,
गोरी चिट्टी फूलों सी,
हवाकें संग संग बलखाती
सूरज छूने की उड़ान उसकी,
सुंदरता की महारानी वो,
बसंती रुतकी रानी सी….
वो जहाँ से गुजरती थी
सब दिलोसे आह निकलती थी
एक भँवरा दिलको छू गया,
कोई दिलमें आकर बैठ गया
जब उनसे मिलकर आती थी,
तब लगती थी समुद्र सी….
नसीब के पन्ने उसके पलट गये
भँवरा बगियन छोड़ गया,
एक पतजड़ आकर ठहर गया
अब उसकी आखोंमें नमी थी.
वो धीर गंभीर सी रहेती थी,
लगती वो दीवानी सी …..
दिन और बरस बदलते गये
मंदिर की सीडियाँ भी टूट गई
दिलके हाथोँ अब भी मजबूर
बस एक तमन्ना क़ायम थी,
बन जाऊँ तारा यही रिहाई.
शाम की तरफ़ ढलती सी….
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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