एक बुलबुला पानी का मेरी औकात मानता हूँ,
वक्त के हाथोंका मै एक खिलौना जानता हूँ.
धुप हवा होंगे मेरी जान के दुश्मन मानता हूँ,
ना रहेगा मेरा अस्तित्व पानी बिना जानता हूँ.
आज जिलू दो पल मस्तीके ये सच मानता हूँ,
सिर्फ दो पलका मेरा क्षणिक जीना जानता हूँ.
मुझे हँसके दुनिया में जान छिड़कना मानता हूँ,
गुम होकर हवा संग घुल मिल जाना जानता हूँ .
ख़ुद को खोके रोते बच्चोको हँसता मानता हूँ,
ना किसी हाथोमें पलभर भी रुकना जानता हूँ .
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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