कुछ करने से पहले, मरना मत
आहार, निंद्रा, भय, मैथुनमें पूरा जग फसता हैं
तुं सिर्फ उसमे फसना मत
जितना करोगें उतना होगा
जो होगा उतना ही, करना मत
घड़ा छलक ही जाता है एक दिन
पाप से इसे भरना मत
सब लोग किसी ना किसी आस पे जीते हैं
नन्हें से उस पौधें को, कुचलना मत
तुं ग़र सच्चा हैं तो बचाएगा नृसिंह
प्रहलाद के भी बाप से तुं, डरना मत
जिस गलीमें माँ-बाप-औरत का मान ना हो,
उस गलीसे तू कभी, गुजरना मत
राम जो फेंके तो डूब ही जाने में मोक्ष
राम लिखा जाए तो, तैरना मत
कुछ करने से पहले ,मरना मत
~ मित्तल खेताणी
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