दिल को जलाने के लिए तो उसने यादे भेजी,
ये गम क्या कम था, के तूने बारिस और भेजी..
खुदको भूलने की कुछ आदत सी हो चली ,
कुछ कमी बाकी रही चंद रंजिसे और भेजी..
बिना कहे दिलको संभालना मुश्किल बड़ा
बंध होठोसे फिर ये कैसी साजिस और भेजी..
पथ्थर से होने लगे थे हम जुदाई के शहरमे ,
बंजर से दिल पर तुने क्यू ख्वाइश और भेजी..
बिना वजह रूबरू तो मुलाक़ात करता नहीं
सपनों से जगाकर एक नुमाइस और भेजी …
दिवानेपन की कोइ ना मंझिल रही कही
गझल मे छुपाकर ‘सखी’ बंदिश और भेजी..
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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