दिलकी किताब से निकालकर रचाई गई ग़ज़ल
वो सुगंघ जब फैली सबको मस्त कर गई ग़ज़ल.
ख़ुशी के आलममें जब यारोंको सुनाई गई ग़ज़ल,
उनकी पनाहमें फिर खुब चुलबुली बन गई ग़ज़ल.
ख़ुशीकी बात या गमकी कहानी दोहराई गजल,
कभी बारिस तो कभी घुपमें गुनगुनाई गई ग़ज़ल
भरकर सब्दोके रंग नूर नए यूँ रोज सजाई ग़ज़ल
लो बिना कागज कलम दिलोंको सजा गई ग़ज़ल
सब उम्मीद और इच्छायें शब्दो संग बहा गई ग़ज़ल
ज़िंदगी के पन्नोको आज फिर जिन्दा कर गई ग़ज़ल
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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