दील आज फीर धडका..
वो चाहत का पल याद आया
हमें अपना याद आया…
ये बादल क्यों इतना गरजा?
उसे कौन याद आया ?
हम नहीं रोयें सरेआम ,
हमतो बारिश में भीगे,
हमें बचपन याद आया
आसमाँ इतना क्यूँ रोया?
उसे कौन याद आया ?
हम युही नहीं मुस्कुराए,
बेजान पथ्थरोके शहेरमे
हमें वो चहेरा याद आया.
ये फूल क्यूँ मुराझाए ?
उसे कौन याद आया ?
हाथ फैलाये है आसमान में,
ज़रूरत उन्हें दुआओं की
हमें कोई अपना याद आया…
क्यूँ हाथ उठायें है ज़माने ने ?
कौनसा ख़ौफ़ ज़हनमें आया ?
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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