भूलकर सब रस्मो रिवाज चले आते हो तुम,
बंद नज़र वक़्त बेवक्त यूँ मिल जातें हो तुम.
जिस हकीकत को वक़्त ने अधूरा छोड़ दिया,
बड़े नादाँ होकर उसकी तस्वीर सजाते हो तुम.
जिंदगी सूखे पत्तो का ढेर है ये सब जानते हैं
फिरभी आग तड़पन की इनमे लगाते हो तुम.
आँखोका तो काम ही था अकेले ख़्वाब बुनना
क्यों बेवक्त अश्क गिराकर वह मिटाते हो तुम.
ठहरे हुआ वक़्त, हर बार नया लाये कहाँ से,
पुराना इश्क, इंतज़ार सदियोंसे कराते हो तुम.
है अगर ताकत दिलको खरीदकर दिखाओ
समझते हो अगर अपना क्यूँ परखते हो तुम.
ना मंज़िल का पता ना कदमो के निशाँ बाकी,
खुद ही चले गए हो! क्यों याद आते हो तुम.
– रेखा पटेल (vinodini)
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