जो चला गया उसे भुले कैसे?
गम उसकी याद का छोड़े कैसे?
रहना है उसके बिना,रहे कैसे?
हमारी वफ़ा,मुद्दतों की नाराज़गी,
जो ना सुन सके उसे कहे कैसे?
ये हयातें मौत की डगर पर,
कोई ख़ाक में बसें या राखमें.
वो गुबार आया आँधीओ का,
जो बहा ले गया उसे ठूँठे कैसे?
कोई इल्तिजा, ना कोइ बंदगी,
ना कजा से हाथ छुड़ा सके.
जिन्हे दूर बहुत बहाँ ले गई हवा,
ना वो रुक सका ना रोक सके,
जो दिलमें है आंखोमें बसें कैसे?
ना कोई दुआ, ना दवा काम आई
जो चला गया उसे भुले कैसे ….
– रेखा पटेल
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