जब कुछ नहीं था,
तो कुछ भी नहीं था.
ना ऐशो-आराम,और ना ख़ाली वक़्त
हर पल मस्तीमें हम थे व्यस्त.
अब कुछ में भी सबकुछ है.
हर पल काम में व्यस्त.
हर काममें हमसब त्रस्त.
तब अब याद आती है,
वो बाते, वो यादें,
भूलकर रस्मों रिवाज
वो छोटी पिपरमिंट सी मुलाकातें.
वो हॅसना, गाना, रूठना मनाना.
चुराकर आँख आंखोका मिल जाना.
अब ना वो उम्र है ना वो ख़ाली वक्त
फिर भी सब साथ है तो खुश है.
अब यह थोड़ा ही सबकुछ है.
कुछ लेना,कुछ देना
वो मिलना मिलाना
वो भाव अभाव में बह जाना
फिर मिलते मिलाते बिझड़ जाना.
वो वक्त भूल जाना जहाँ दिल डूबा
वो वक्त गले लगाना, जहाँ साथ मिला
थोड़ा ही सही प्यार मिला, अपनापन मिला.
फिर जिंदगीको हसके गले लगाना.
– रेखा पटेल
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